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जय माँ रत्नेश्वरी

|| जय माँ भवानी ||

|| जय माँ रत्नेश्वरी ||

मां भगवती का यह पूजा स्थल रतनपुर गांव के पूर्वी भाग में स्थित है। बड़ों से हमें जो पता चला उसके अनुसार यहां प्राचीन काल से ही मां भगवती की आराधना होती आ रही है। इन लोगों की आराध्या कब से लोगों की भावनाओं को तृप्त करती आ रही है। समय के परिवर्तन के साथ इनकी पूजा का क्रम भी विस्तृत और विकसित होता जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मां के इस रूप की स्थापना बाबा बम भोली दास ने की थी। उनकी स्थापना के बाद से यहां का विकास ऊर्ध्व गति से प्रगति और विकास कर रहा है।

मंदिर के पूर्व-इतिहास को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं, इतिहास में सुने गए तथ्यों में अंतर होने के कारण इतिहास में विसंगति के कारण इसे दर्ज नहीं किया जा रहा है। उन्हीं विचारों में से एक के अनुसार हिन्दुस्तान के समाचार पत्र में जो छपा उसका अंश इस प्रकार है---

रतनपुर स्थित माता रत्नेश्वरी अस्थान मितलांचल में वैष्णवी दुर्गा पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां की माता लक्ष्मी स्वरूप दुर्गा हैं। सच्चे मन से इनकी पूजा करने वाले भक्तों की माता तत्चन ही उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं। यही कारण है कि यहां हर दिन मिथलांचल और नेपाल के कोने-कोने से भक्तों की पूजा होती है। यहां शारदीय और वार्षिक नवरात्रि दोनों में वैष्णवी पद्धति में माता की पूजा की जाती है। यहां मां दुर्गा की मूर्ति नहीं बनाई जाती है। मंदिर में अस्थित माता की पिंडी (प्रतिमा) की पूजा की जाती है। माता रत्नेश्वरी अस्थान का भी एक प्राचीन इतिहास है।

बंगाल में 1234 से 1293 तक सेन राज वंश था। देव वंश के उदय के बाद सेन वंश के उत्तराधिकारी वहां से अन्य स्थानों पर पलायन करने लगे। अंतिम शासक के सब सेन वंश के उत्तराधिकारी का प्रपौत्र रत्नासेन बंगाल से भागकर मिथलांचल पहुँच गया। वे मां दुर्गा के परम उपासक थे। उन्होंने रतनपुर के तत्कालीन दुर्गा स्थान के पास अपना किला बनवाया। राजा रत्नसेन के नाम पर इस बस्ती का नाम रतनपुर रखा गया। अब यह रतनपुर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पशु बलि नहीं दी जाती है। .

मंदिर एक नजर में ...

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